
प. पू. गुरुदेवश्री समंतभद्र महाराज :
संक्षिप्त जीवनकार्य
गृहस्थ नाम : देवचंद कस्तुरचंद शहा
पिताश्री : कस्तुरचंद खेमचंद शहा
माता : कंकुबाई कस्तुरचंद शहा
जन्मतिथि : मार्गशीर्ष वद्य ४, दि. १९ दिसंबर १८९१
जन्मस्थान : करमाला, जि. शोलापुर (महाराष्ट्र)
परिवार
चार भाई – १. रामचंद, २. शिवलाल, ३. देवचंद (पूज्य गुरुदेवश्री), ४. हिराचंद (बाल्यकाल में ही स्वर्गवास) तथा तीन बहिणे – १. फुलुबेन, २.
चंचलाबेन, ३. मथुराबेन ।
शिक्षण
प्राथमिक शिक्षा – करमाला, दुधनी
माध्यमिक शिक्षा – नॉर्थकोर्ट हायस्कूल, शोलापुर
महाविद्यालयीन शिक्षा – १. फर्ग्युसन कॉलेज, पूना २. बडोदा (इंटर की परीक्षा), ३. विल्सन कॉलेज, मुंबई विश्वविद्यालय १९१६ (अंग्रेजी, संस्कृत),
धार्मिक शिक्षा – जैन प्रचार-प्रसार समिति, जयपुर (पं. श्री. अर्जुनलालजी सेठी)
ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा : आजीवन – कुंथलगिरि(१९०६) हुतात्मा मोतीचंदसह
आजीवन-प्रतिमा – मुक्तागिरि (१९२५) पं. श्री.देवकीनंदजी, कारंजा गुरुकुलपरिवार के यात्रासमय
क्षुल्लकदीक्षा : मार्गशीर्ष शुद्ध ३, शके १८५५, सोमवार, दि. २० नवंबर १९३३, ब्यावर (राजस्थान) शुभहस्ते-चारित्रचक्रवर्ति आचार्यश्री शांतिसागरजी महाराज
मुनिदीक्षा : मार्गशीर्ष शु. १२, शुक्रवार, दि. २८ नवंबर १९५२ शुभहस्ते – मुनिवर्य श्री १०८ वर्धमानसागरजी महाराज (आचार्यश्री शांतिसागर द्वारा दीक्षित उनके बडे भाईसाहब)
ध्येय: आदहिदं कादव्वं जई सक्कई परहिदं च कादव्वं । (आत्महित के साथ शक्त्यनुसार परहित करना चाहिए।)
बोधवाक्य :
१. न धर्मो धार्मिकैर्विना ।
२. ज्ञानेन पुंसां सकलार्थसिद्धिः।
३. उन्नतं मानसं यस्य भाग्यं तस्य समुन्नतम् ।
पवित्रतम कार्य :
१) शरीरसुधारणेच्छु बाणेकरी तालीम’-१९०६
२) ‘जैन बालोत्तेजक समाज’ – लोकमान्य तिलकद्वारा उद्घाटित, दि. २६ फरवरी १९०८ भारतीय शिक्षापद्धति एवं श्रमणसंस्कृति के संरक्षण हेतु निम्नांकित जैन गुरुकुलसंस्थाओं की संस्थापना की
१. श्री महावीर ब्रह्मचर्याश्रम, कारंजा, जि. वाशिम १९९८
२. श्री कुंकुबाई श्राविकाश्रम, कारंजा, जि. वाशिम १९३३
३. श्री बाहुबली ब्रह्मचर्याश्रम, बाहुबली, जि. कोल्हापुर १९३४
४. श्री पार्श्वनाथ ब्रह्मचर्याश्रम, स्तवनिधी, जि. बेलगाम १९३९
५. श्री दिगंबर जैन गुरुकुल, शोलापुर१९४७
६. श्री पार्श्वनाथ जैन गुरुकुल, खुरई (म.प्र.) १९४४
७. श्री भुजबली ब्रह्मचर्याश्रम, कारकल (द.कर्नाटक) १९४४
८. श्री गुरुकुल सेवा मंडल, कारंजा १९४४
९. श्री भरतेश गुरुकुल, बेल्लद बागेवाडी, जि. बेलगाम १९५९
१०. श्री पार्श्वनाथ ब्रह्मचर्याश्रम, एलोरा, जि. औरंगाबाद १९६२
११. श्री बाहुबली विद्यापीठ, बाहुबली, जि. कोल्हापुर १९६३
१२. श्री जिनसेनाचार्य गुरुकुल, तेरदाल, जि. बागलकोट १९६६
१३. श्री देशभूषण-कुलभूषण ब्रह्मचर्याश्रम, कुंथलगिरी, जि. उस्मानाबाद (पुनरुज्जीवित) १९७०
ग्रंथप्रकाशन संस्था :
१. श्री सन्मति प्रकाशन, बाहुबली
२. श्री कंकुबाई धार्मिक पाठ्यपुस्तकमाला, कारंजा
३. श्री महावीर ज्ञानोपासना समिति, कारंजा
४. श्री अनेकांत शोधपीठ, बाहुबली
५. जैन संस्कृति संरक्षक संघ, जीवराज जैन ग्रंथमाला, शोलापुर (संकल्पना एवं प्रेरणा)
सत्साहित्य विक्रीकेंद्र :
१. महावीर बुक डेपो, कारंजा
२. भरतेश ग्रंथ भांडार, बाहुबली
३. पार्श्वनाथ ब्रह्मचर्याश्रम, एलोरा
धर्मतीर्थ संरक्षणः
१. भारतवर्षीय दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी हेतु एक कोटी
ध्रुवनिधि संकलन करने के लिए भद्रशिष्य मुनिश्री आर्यनंदीजी, मुनिश्री महाबल महाराजजी आदि त्यागी, व्रती कार्यकर्ताओं को प्रेरणा एवं मार्गदर्शन
२. घर घर में णमोकार महामंत्र का प्रसार
३. जिनवाणी स्वाध्याय प्रसार मंडलद्वारा स्वाध्याय, पाठशाला, धर्मपरीक्षा इ.
४. वीर सेवा दल कार्यकताओं को प्रेरणा एवं मार्गदर्शन
५. धर्मशिक्षण, संस्कार एवं सांस्कृतिक शिबिर तथा कार्यकर्ता प्रशिक्षण, पूजापाठ प्रशिक्षण शिबिर इ.
उल्लेखनीय प्रेरणा व मार्गदर्शन :
१. भारतवर्षीय दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, मुंबई
२. अनेकांत एज्युकेशन सोसायटी, बारामती
३. जयसिंगपुर कॉलेज, जयसिंगपुर ।
४. ऐल्लक पन्नालाल दिगंबर जैन पाठशाला, शोलापुर
५. श्री कुंदकुंद दिगंबर जैन तीर्थसुरक्षा ट्रस्ट, मुंबई
धार्मिक विधिविधान :
१. श्री अतिशय क्षेत्र बाहुबली में २८ फीट उँची भ.बाहुबली की सातिशय जिनप्रतिमा के साथ पावन वंदनीय तीर्थधामों की प्रतिकृतियों की निर्मिति
२. कारंजा, बाहुबली, एलोरा, स्तवनिधी, बेल्लद बागेवाडी आदि स्थानोंपर जिनमंदिर एवं प्रतिकृतियों का निर्माण
३. अनेक पंचकल्याणक, महास्तकाभिषेक, वेदीप्रतिष्ठा, चरणपादुका प्रतिष्ठापना आदि उपक्रम ।
४. भ. महावीर का २५०० वाँ निर्वाणमहोत्सव, वार्षिकोत्सव, रथोत्सव आदि उत्सव
प्रदत्तदीक्षा:
१. निग्रंथदीक्षाप्रदत्त -मुनिश्री आर्यनंदी महाराज, मुनिश्री महाबल महाराज, मुनिश्री परमानंद आदि
२. आर्यिकादीक्षाप्रदत्त- आर्यिका श्री सुप्रभामती माताजी
३. क्षुल्लकदीक्षाप्रदत्त – क्षु. जयकीर्ति, क्षु. वीरभद्र, क्षु. विजयभद्र, क्षु. यशोभद्र आदि
४. प्रतिमाधारी – ब्र. माणिकचंद चवरे, ब्र. जयकुमार भीसीकर, ब्र. जयकुमार महाजन, ब्र. रामचंद्र बाकलीवाल एलोरा, ब्र.बजाबाई, सखाराम देवचंद शहा सोलापूर, श्रीमती मैनाबाई जोहरापूरकर कारंजा आदि
५. आजीवन बालब्रह्मचारी – ब्र. माणिकचंद भीसीकर, ब्र. गजाबेन, ब्र. वालचंद खेमचंद शहा, ब्र. माणिकचंद शहा (मोहोळकर), ब्र. अजितकुमार करके, ब्र. भूपाल दलाल, ब्र. बाबुराव सि. पाटील, ब्र. सुजाताताई रोटे, ब्र. यशपालजी, ब्र. श्रीधर मगदूम, ब्र. मृत्युंजय मालगावे, ब्र. प्रेमचंद देवचंद शहा, ब्र. आ. भा. सोनटक्के, ब्र. देवचंद जोहरापूकर, ब्र. धन्यकुमार बेलोकर, पद्मश्री सुमतिबाई शहा, ब्र.बाबासाहेब कुचनुरे, ब्र. आत्मानंदजी कोबा, ब्र. कुसुमताई पाटील, ब्र. श्रीपाल कसलीवाल इत्यादि अनेक तथा अल्पावधि के व्रतधारी गुरुकुल स्नातक असंख्य हैं।
गुरुकुलशिक्षासूत्री :
१. गुरुकुल पंचसूत्री – शील, ज्ञान, प्रेम, सेवा, व्यवस्था
२. व्यावहारिक पंचसूत्री – समय और धन की बचत, आतिथ्य, योजकता, वैय्यावृत्य एवं पुनर्निरीक्षण
३. जीवन की मंगलसूत्री – मंगल विचार, मंगल उच्चार, मंगल आचार ४. सेवाचतुष्टय का समन्वय – आत्मसेवा, धर्मसेवा, जनसेवा एवं राष्ट्रसेवा
५. आरोग्यसंपन्नता हेतु निसर्ग चतुःसूत्री – अल्प
६. यशस्विता का राजमार्ग -कार्यसातत्य, नियमितता, शुद्ध कार्यपद्धति
७. बालसंगोपन की पंचसूत्री- १. सहानुभूति एवं मानवतापूर्ण व्यवहार करे । २. अति स्तुति वा अति निंदा, कटु अथवा कठोरतासे न बोले । ३. सुसंगत और सुनिश्चित दिशानिर्देश करे । ४. क्रीडा, विविध उपक्रम आदि विधायक कार्यों से व्यर्थ समय का सदुपयोग करवाइए। ५. उम्र और शक्त्यनुसार कार्यादि करवाना चाहिए। ८. सुख की साधनत्रयी – उच्च विचार, सत्य और प्रेमपूर्ण उच्चार तथा हितकर आचार दर्शनार्थी के लिए प्रश्न : आप स्वाध्याय करते हैं क्या? दर्शनार्थी के लिए आशीर्वचन : आपका परम कल्याण हो !
निर्याणतिथि : श्रावण शुद्ध ५, दि. १८ अगस्त १९८८